Sunday, January 4, 2009

...अपने करीब !





स्था
और फिर अनास्था
और दोनों के बीच कहीं
छुटता हुआ
एक सूत्र

फैलता हुआ
तागा

जब जब
मेरी हथेलियों के बीच उग आई
भाग्य रेखा को छूता है...

तब तब
कहीं
अन्यायास ही
मैं
अपने करीब , बहुत करीब
पहुँचने लगता हूँ !!

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