Sunday, September 13, 2009

"...वक्त्त"


मिल ही जाता है वक्त्त मुझे देर सवेर ,
लाख उससे मैं दामन बचाता रहूं !
घोँप कर घड़ी के काँटे मेरी हथेली पर ;
चाहता है कमबखत मुस्कुराता रहूं !!

Friday, September 11, 2009

"....ये मेरा खुदा "




....और फिर
अपनी ही उनींदी परछाईं में
मैंने उसे देखा
इक ख्वाब के अहसास सा

कुंवारी बर्फ सी सफेदी लिए
हवाओं में खुशबू कि तरह
सब तरफ बिखरता हुआ सा


और फिर महसूसा ...
रूह की गहराई में दूsssर तक उतरते
एक चुप्प सी खामोशी बनकर ....हौले हौले !!

ये मेरा खुदा
तुम्हारे खुदा से यूँ अलग सा क्यूँ है ?