
....और फिर
अपनी ही उनींदी परछाईं में
मैंने उसे देखा
इक ख्वाब के अहसास सा
कुंवारी बर्फ सी सफेदी लिए
हवाओं में खुशबू कि तरह
सब तरफ बिखरता हुआ सा
और फिर महसूसा ...
रूह की गहराई में दूsssर तक उतरते
एक चुप्प सी खामोशी बनकर ....हौले हौले !!
ये मेरा खुदा
तुम्हारे खुदा से यूँ अलग सा क्यूँ है ?
आपकी लेखन शैली का कायल हूँ. बधाई.
ReplyDeleteये मेरा खुदा
ReplyDeleteतुम्हारे खुदा से यूँ अलग सा क्यूँ है ?
बेहतरीन लिखा है आपने. बहुत सुन्दर
ये मेरा खुदा तुम्हारे खुदा से यूँ अलग सा क्यूँ है ?
ReplyDeleteखुदा तो एक वही रहा होगा ...फर्क बंदगी का रहा होगा ..!!
बेहतरीन!
ReplyDeleteइसलिए कि हर इंसान का खुदा अलग होता है। हर कोई अपने लिए अलग खुदा गढ़ता है।
ReplyDeleteBAHUT HI SUNDAR LAGI ............
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