
कहाँ थे तुम
जब पुकारा था तुम्हें
मेरे दर्द ने ?
कहाँ थे तुम
जब दिन भर ये नम आँखे
हर किसी सूरजमुखी कि पंखुडी
टटोल रही थी ,
हर गली -हर मकान के मुंडेरों पर
घुटनों के बल चल चल
मेरी हर सांस
तुम्हारी ही किसी छूट गयी परछाईं कि टोह में
इधर उधर डोल रही थी...
कहाँ थे तुम
जब रात रात भर की जगी
अंधी बहरी सड़कों पर
मेरी उदासी
ढूंढा किये थी
तुम्हारे होठों से गिरी किसी मुस्कुराती रोशनी की लकीर को !
कहाँ थे तुम ?
जब बदहवासी ने मेरी
तन अपना फाड़ कर
तुम्हें आने के लिए लिखा था ....
अब आये हो ?
इत्ती देर में आये हो ?
चलो ....
मेरा दर्द
नम आँखें
भरभराती साँसे
मेरी उदासी और मेरा तन
तमाम सब मिल कर तुम्हे ढूँढने गए हैं
आते ही होंगे ....!
तुम बैठो तो सही ! !
बहुत गहरे भाव!
ReplyDeleteसुना था
ReplyDeleteप्यार बहुत जरूरी अहसास है
सबके लिये
ऐसा जाना भी
फिर इक मुलाकात हुई
इक नया अनुभव हुआ
प्यार जरूरी नहीं है
सबके लिये
गहराई से लिखी हुई कविता
ReplyDeleteभाव भी गहरे ...बेहद खूबसूरत
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
bahut hi gehre bhav liye sunder rachana,jaise dard khud bol pada ho.bahut badhai.
ReplyDeletedil ko chhooti bhavaviyakti hai bahut bahut badhi aur shubhkamnayen
ReplyDeleteHi!
ReplyDeletemy first visit here.Liked your expressions.Your words have depth...
TC.