
खिड़की के पल्ले में सिमटा
छोटा सा आकाश
आस पास की बिखरी भीड़ का
दस्तावेज़ बन चला है
क्यूंकि
मैं जानता हूँ
.................इन आँखों के फ्रेम में दिखने वाली
साली भीड़ नहीं है
फकत
भीड़ का इक छोटा सा हिस्सा है !
अपनी अभिव्यक्ति के बहाने जिसे
संवेदनाओं के पोरों से छु छु कर
चखा है ;
मन की देहरी पर घिसा है !
और फिर
इस खिड़की के ज़रिये
मेरे नज़रिए का
यही तो किस्सा है !!
और फिर
ReplyDeleteइस खिड़की के ज़रिये
मेरे नज़रिए का
यही तो किस्सा है !!
lसही है... अच्छा लिखा।
बस, जितना दिखता है, उतना ही हिस्सा हमारा है. सुन्दर रचना.
ReplyDeleteबेहतरीन रचना के लिए शायर सागर साहब को मेरा सलाम माफ करना आपको शायर बोल रहा हूं
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