Sunday, September 13, 2009

"...वक्त्त"


मिल ही जाता है वक्त्त मुझे देर सवेर ,
लाख उससे मैं दामन बचाता रहूं !
घोँप कर घड़ी के काँटे मेरी हथेली पर ;
चाहता है कमबखत मुस्कुराता रहूं !!

6 comments:

  1. कितनी हक़ीकत..कितना फ़साना..
    प्रभावित कर गयीं आपकी चार पंक्तियाँ..बधाई

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  2. आपको हिन्दी में लिखता देख गर्वित हूँ.

    भाषा की सेवा एवं उसके प्रसार के लिये आपके योगदान हेतु आपका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ.

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  3. बहुत खुब। लाजवाब पंक्ति

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  4. वक़्त से दामन बचाना इतना आसान भी तो नहीं है ..सुन्दर भावाभिव्यक्ति ..!!

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  5. बहुत सुन्दर
    बेहतरीन

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