Sunday, February 14, 2010

" फिर दिखा वो आइना ...."




चंद कतरे ज़िंदगी की ओस के, होंठों पे रख
मैं खुश हुआ था,
फिर किसी उम्मीद के अहसास ने आकर के यूँ
मुझको छुआ था !

एक पल में उड़ चले थे , सोच के पर जाने कहाँ,
सच मेरी लाचार हालत का भी मुझको झूठ सा
लगने लगा था !

.......कि अचानक दिख गयी तस्वीर वो जो थी हकीकत,
फिर दिखा वो आइना किरचें समेटे ज्यों का त्यों
टूटा हुआ था !

अब वही सूखे से कतरे आँख में फिर तिर रहें हैं
भीगते तो अश्क बन कर बह भी जाते,
रूह के फैले अंधेरों में बेमकसद, फिर रहें हैं !

फिर वही मैं हूँ औ' मेरी बेबसी,
पर कब तलक !
आज की रात कटेगी तो सहर देखूँगा !!!!

5 comments:

  1. अचानक दिख गयी तस्वीर वो जो थी हकीकत,
    फिर दिखा वो आइना किरचें समेटे ज्यों का त्यों
    टूटा हुआ था !....बहुत बढ़िया लगी यह पंक्तियाँ सुन्दर अभिव्यक्ति शुक्रिया

    ReplyDelete
  2. भीगते तो अश्क बन कर बह भी जाते,
    रूह के फैले अंधेरों में बेमकसद, फिर रहें हैं !

    ओह! बहुत बेहतरीन अभिव्यक्ति!

    ReplyDelete
  3. आज की रात कटेगी तो सहर देखूँगा .nice

    ReplyDelete
  4. सलाम है आपकी अद्भुत लेखन कला को...दिल की गहराईयों को आप शब्द इतनी आसानी से दे देते हैं की हैरानी होती है...कमाल की रचना है ये आपकी...जितनी प्रशंशा करें कम ही होगी...वाह सागर जी वाह...
    नीरज

    ReplyDelete
  5. अब वही सूखे से कतरे आँख में फिर तिर रहें हैं
    भीगते तो अश्क बन कर बह भी जाते,
    रूह के फैले अंधेरों में बेमकसद, फिर रहें हैं !
    बहुत खूब बढिया रचना

    ReplyDelete