
एक कुर्सी खींच कर उल्टी
बैठा था
कुछ ही देर पहले
वो एक कबूतर
टूटी प्याली में चोंच मारता
पलकें झपकाता
गाता मुस्कुराता
नाचता नचाता ....
हवाओं में रंग से भरता हुआ
उड़ गया अचानक
जाने कहाँ ...!
अब सिर्फ पंख हैं ....
कुछ प्याली में
कुछ कुर्सी पर
और कुछ इधर उधर...
गीत तो हैं ...शायद मुस्कुराहटें भी
पर हवा अब अकेली है
अकेली ही रहेगी ...
शायद हमेशा के लिए !!!
किशोर दा को हमारा भी शत शत नमन !
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