Wednesday, April 11, 2018

"बाकी सब ठीक है "

जो चाहा था
मिला
सब कुछ
मगर
जो मिला
सब कुछ
क्या चाहा था
यही सब कुछ

जीवन की शर्तें
'कन्डीशन अप्लाई'
के साथ होती है
नज़र नहीं आती
सीढ़ी की रेलिंग
छुए बिना भी
ऊपर
चढ़ते चले जाने का अहसास
नशा है
आह्लादित करता है
निश्चय ही
बहुत कुछ करता है
सिवाय इसके
कि पायदान
ऊपर की बजाय
नीचे फिसल रहें हैं
और ऊपर जाने की खबर
झूठ है
खुली नहीं
बन्द मुट्ठी भी खाक ही होती हैं
पर कमबख्त
झूठे मुहावरों के मुग़ालते में
समझ
धोखा खाती है
देती तो है ही !
ज़िन्दगी खाब है
यह पता होता
तो भी जागने की कोशिश
बदतमीज़ी है
नींद
हर बुरे खाब के बावजूद
खूबसूरत है
चार घण्टे की हो
या चार जन्मों की
चाहा यही था
बस एक
सवालिया निशान है
क्या चाहा यही था ?
बाकी सब ठीक है !!

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