Thursday, January 15, 2009

जीवन रीत गया...!


अतीत से कटा नहीं
वर्तमान के गुंथे आटे में अटा
जीवन रीत गया !!

कितने टुकड़े जिया
पल पल, क्षण क्षण
याद नहीं-
- गिनती आती नहीं
-या की जाती नहीं

किससे कितना जुड़ा
कितना कटा
जीवन रीत गया !!


कितने पैर होंगे
सोच के कबूतर के
कितने संभाल कर रखे हैं
ख़ुद ही के
खंडहरों पर
गिरना - उखड़ना वाकई मुश्किल है

आने वाले कल
कल के हर पल की आस
आसपास महसूस करता है

कितनी बार गुणा हुआ
कितनी बार बटा ....
जीवन रीत गया !!

जकडे रहे सम्बन्ध
या संबंधों से जुडा रहा
ना निगल सका - ना उगल सका
कड़वी सी फांक सा कहीं
वहीं गले में अटका रहा

साँसों की सिहरन में
कितनी बार लहराया
कितनी बार फटा
जीवन रीत गया !!

काश यह ना होता - वो होता
काश वो भी ना होता
कुछ और होता
- षड़यंत्र गहरा था
-चाल भयंकर थी
यह, वो, या कुछ और ना भी होता
तो भी ज़रूर होता

नियती बन कई बार अड़ा
फिर जाने कितनी बार हटा
जीवन रीत गया !!

1 comment:

  1. नियती बन कई बार अड़ा
    फिर जाने कितनी बार हटा
    जीवन रीत गया !!

    -क्या बात है!

    ReplyDelete