मैं का टूटना हम हो जाना दर्द है तपती सांकल की तरह ना छुअन की संभावना ना ही खुल जाने की आस
बंद होती हथेली पर पूर्ण और अपूर्ण के दरम्यान भीड़ सा हो जाने का अहसास सर उठाता है .. चुभता रहता है तीखी किरचों की तरह एकाकीपन आँख बंद करता है ( अंधों से परिचय भी हो तो कितना )
टूटना बिखरना परिभाषाएं खो देना कब हुए पर्याय - जुड़ जाने के ?
कब हुआ करीब आना दूर.... बहुत दूर हो जाना खुद से ?
रौशनी से ज्यादा नजदीकी - हमेशा अँधेरा ही क्यों होती है ?
प्रश्नों की दूब पर ओस बन के कोई उत्तर उतरे ना उतरे... स्तिथि मात्र यही है ... मैं का टूटना हम हो जाना दर्द है स्वीकारना होगा दर्द की तरह !!!
टूटना बिखरना परिभाषाएं खो देना कब हुए पर्याय - जुड़ जाने के ?
मैं का ताउम्र मै को ही टुकड़े-टुकड़े तराशते रहना, जोड़्ते रहना, तलाशते रहना भी उतना ही दर्द है.. शब्द-विन्यास ऐसा है जैसे कि काँच का कीमती गुलदस्ता छन् से फ़र्श पर टूट कर बिखर गया हो...अद्भुत
बेहोशी
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बहुत सारी कविताएं लिखने के बाद
मुझे हुआ यह बोध
कविताएं कम से कम लिखनी चाहिए
और अगर लिखी भी गई हो अधिक
तो उन्हें सौंप देना चाहिए एकांत के हवाले
...
रंग चैत्र महीने के
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*रंग चैत्र के ...*
चैत्र का महीना बदलाव का महीना है , नए रंग में कुदरत जैसे खुद से मिला कर
सम्मोहित करती है।
अमृता ने इसी महीने से जुड़ा बहुत कुछ ...
नया मौसम
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नया मौसम
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*जिस दम रात के उस पहर*
*ओस का आलिंगन पा कर*
*किरणों की बारिशें*
*खामोशियों के सैलाब*
*तुमाहरी कलाई थाम कर*
*बे इन्तहा रक्स कर...
बदमाश औरत
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कल से इक विवादास्पद लेखक की अपने किसी कमेंट में कही इक बात बार बार हथौड़े
सी चोट कर रही थी ...." कुछ बदमाश औरतों ने बात का बतंगड़ बना दिया ...."
बस वहीं इस क...
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हैप्पी टु ब्लीड... क्योंकि दाग अच्छे हैं
हाल ही में में सबरीमाला मंदिर के धर्माधिकारियों द्वारा स्त्रियों के लिए
मासिक धर्म फ्रिस्किंग़् मशीन लगाने की घो...
चरण स्पर्श
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'पाय लागूं काका '
'जीवतो रह बेटा ....... आज घणो राजी-राजी लाग रयो है '
'राजी होने की तो बात है काका'
'क्या '
'आप का आशीर्वाद मिल गया काका'
'वो तो पाय लगने स...
ख़ुद की पहचान ? अभी कहाँ हुई ....! ना मालूम क्या चाहत है और कैसी तलाश ! अभी तक तो सिर्फ़ चल रहा है अनवरत सिलसिला ! सवाल यह नहीं है की आप कहाँ है , सवाल यह है कि जहाँ भी आप है वहां आप कर क्या रहें हैं !
टूटना
ReplyDeleteबिखरना
परिभाषाएं खो देना
कब हुए पर्याय - जुड़ जाने के ?
मैं का ताउम्र मै को ही टुकड़े-टुकड़े तराशते रहना, जोड़्ते रहना, तलाशते रहना भी उतना ही दर्द है..
शब्द-विन्यास ऐसा है जैसे कि काँच का कीमती गुलदस्ता छन् से फ़र्श पर टूट कर बिखर गया हो...अद्भुत
बेहतरीन अभिव्यक्ति..सुंदर रचना..बधाई
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा रचना।
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